अमर महानायक वीर महाराणा प्रताप | डॉ.सुनील त्रिपाठी निराला
- August 10, 2020
- By Dr. Sunil Nirala
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अमर महानायक वीर महाराणा प्रताप - डॉ.सुनील त्रिपाठी निराला
वीर सपूत, महान योद्धा और अदभुत शौर्य व साहस के प्रतीक महाराणा प्रताप। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को कुंभलगढ़ दुर्ग (पाली) में हुआ था।
महाराणा प्रताप का जन्म महाराजा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कंवर के घर में हुआ था। उन्हें बचपन और युवावस्था में कीका नाम से भी पुकारा जाता था। ये नाम उन्हें भीलों से मिला था जिनकी संगत में उन्होंने शुरुआती दिन बिताए थे। भीलों की बोली में कीका का अर्थ होता है - 'बेटा'।
महाराणा प्रताप के पास चेतक नाम का एक घोड़ा था जो उन्हें सबसे प्रिय था। प्रताप की वीरता की कहानियों में चेतक का अपना स्थान है। उसकी फुर्ती, रफ्तार और बहादुरी की कई लड़ाइयां जीतने में अहम भूमिका रही।
वैसे तो महाराणा प्रताप ने मुगलों से कई लड़ाइयां लड़ीं लेकिन सबसे ऐतिहासिक लड़ाई थी- हल्दीघाटी का युद्ध जिसमें उनका मानसिंह के नेतृत्व वाली अकबर की विशाल सेना से आमना-सामना हुआ। 1576 में हुए इस जबरदस्त युद्ध में करीब 20 हजार सैनिकों के साथ महाराणा प्रताप ने 80 हजार मुगल सैनिकों का सामना किया। यह मध्यकालीन भारतीय इतिहास का सबसे चर्चित युद्ध है। इस युद्ध में प्रताप का घोड़ा चेतक जख्मी हो गया था। इस युद्ध के बाद मेवाड़, चित्तौड़, गोगुंडा, कुंभलगढ़ और उदयपुर पर मुगलों का कब्जा हो गया था। अधिकांश राजपूत राजा मुगलों के अधीन हो गए लेकिन महाराणा ने कभी भी स्वाभिमान को नहीं छोड़ा। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया।
1582 में दिवेर के युद्ध में राणा प्रताप ने उन क्षेत्रों पर फिर से कब्जा जमा लिया था जो कभी मुगलों के हाथों गंवा दिए थे। कर्नल जेम्स टॉ ने मुगलों के साथ हुए इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा था। 1585 तक लंबे संघर्ष के बाद वह मेवाड़ को मुक्त करने में सफल रहे।
महाराणा प्रताप जब गद्दी पर बैठे थे, उस समय जितनी मेवाड़ भूमि पर उनका अधिकार था, पूर्ण रूप से उतनी भूमि अब उनके अधीन थी। 1596 में शिकार खेलते समय उन्हें चोट लगी जिससे वह कभी उबर नहीं पाए। 19 जनवरी 1597 को सिर्फ 57 वर्ष आयु में चावड़ में उनका देहांत हो गया।
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मुगलों को नाकों चने चबवाने वाले महान योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को हुआ। हल्दीघाटी का युद्ध मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को लड़ा गया था. अकबर और महाराणा प्रताप के बीच यह युद्ध महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुआ था।
हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे. मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी।
महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था।
हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पास सिर्फ 20000 सैनिक थे और अकबर के पास 85000 सैनिक। इसके बावजूद महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे।
अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिए 6 शान्ति दूतों को भेजा था, जिससे युद्ध को शांतिपूर्ण तरीके से खत्म किया जा सके, लेकिन महाराणा प्रताप ने यह कहते हुए हर बार उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया कि राजपूत योद्धा यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता।
महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियां की थीं। उन्होंने ये सभी शादियां राजनैतिक कारणों से की थीं। महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा चेतक था. महाराणा प्रताप की तरह ही उनका घोड़ा चेतक भी काफी बहादुर था। बताया जाता है जब युद्ध के दौरान मुगल सेना उनके पीछे पड़ी थी तो चेतक ने महाराणा प्रताप को अपनी पीठ पर बैठाकर कई फीट लंबे नाले को पार किया था.आज भी चित्तौड़ की हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है।
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लडने वाले सिर्फ एक मुस्लिम सरदार था -हकीम खां सूरी। मेवाड़ को बचाने के लिए आखिरी सांस तक लड़ने वाले महाराणा हल्दीघाटी की लड़ाई में उनका वफादार घोड़ा चेतक गंभीर रूप से जख्मी होने की वजह से मारा गया. लेकिन इस शहादत ने उसे खासी शोहरत दिलाई। महाराणा प्रताप के 17 बेटे थे। महारानी अजाब्दे से पैदा हुए अमर सिंह उनके उत्तराधिकारी बने। उनके अपने ही बेटे ने दगा दिया और महाराणा प्रतापकी मौत के बाद मेवाड़ अकबर को सौंप दिया।